Thursday, 31 August 2017

क्या हमें आज भी ऐसे बाबाओं की ज़रूरत है जो धर्म और आस्था के नाम पर अपने ही अनुयायिओं का शोषण करते हैं ?

कलयुग के बाबाओं ने बाबा नाम का ही अनर्थ कर डाला है। ये समझ नहीं आता, की इन बाबाओं को विश्राम और शयन करने के लिए गुफ़ा नुमा हॉल या कक्ष ही क्यूँ चाहिये होता है ? सेवा करने के लिए युवा सेविकाओं या साध्वियों की ? भ्रमण करने के लिए लक्ज़री गाड़ियों की ? शान शौक़त और विलासिता की हर चीज़ ? क्यूँ ये बाबा लोग अपनी निजी जिन्दगी मे वो सब नहीं करते जिसका उपदेश ये बाकी सब लोगों को देते हैं। अचरज होता है, अनपढ़ या कम पढ़े लिखे लोग ही नहीं, बड़े बड़े प्रोफेशनल्स, डॉक्टर, इंजीनयर, व्यापारी भी ऐसे ढोंगी बाबाओं के आगे नतमस्तक दिखते हैं ? आज से कई साल पहले एक विदेशी संस्था ने विश्व भर के ऐसे सभी बाबाओं का अध्यन किया था, जिसके अनुसार अकेले भारत में 72 बाबा हैं जो खुद को भगवान या उसका दूत बताते हैं। इन बाबाओं के उत्थान कारण है जिनमे से प्रमुख है, सरकार की अक्षमता। आज बेरोज़गारी और मंदी एक अलग ही रूप में है, ऐसे मे अगर कोई बाबा किसी बेरोज़गार को कोई उपाय बताये और संयोग वश उसे जॉब मिल जाये तो वो उस बाबा को भगवान की तरह पूजेगा, ऐसे ही अगर कोई बाबा किसी ग़रीब की इलाज़ मे मदद करे, उसकी बेटी की शादी में मदद करे, तो वो उस गरीब के लिए भगवान से कम न होगा। 

आज बाबा नानक, फ़रीद और साईं जैसे बाबा सिर्फ कथाओं मे ही मिलते हैं। कहते हैं इन बाबाओं की जिन्दगी खुली किताब थी, साई हॉल में विश्राम करते थे, विलासिता से कोसों दूर, जब महासमाधि भी ली तो सम्पति के नाम पर मात्र 9 रूपए, वो भी दान कर दिए। और कलयुग के बाबा, करोड़ों अरबों में खेलते हैं। हवाला का काम, सेक्स रैकेट, राजनीति में दखलंदाजी, गलत तरीके से व्यसाय करना, कॉम्पिटिटर्स को राजनीतिक प्रभाव से पछाड़ना। 

अब सवाल ये है कि क्या हमें आज भी ऐसे बाबाओं की ज़रूरत है जो धर्म और आस्था के नाम पर अपने ही अनुयायिओं का शोषण करते हैं ?

  

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