Wednesday, 9 May 2018

साई बाबा की शिक्षायें ( भाग -3 )


साई बाबा की शिक्षायें (भाग -3)
बहुत से लोग साई बाबा को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं। इसका एक कारण ये भी है वह भी शिव की भाँति वैराग्य की मूरत थे और जीवन पर्यन्त भस्म (Holy Ash) से उनका रिश्ता बना रहा - जिसे उनके भक्त और सँसार उदी के नाम से जानता है। इस उदी का संसारिक महत्व तो सर्वविधित है, कितना भी असाध्य रोग हो, यदि पूर्ण निष्ठा के साथ उदी का प्रयोग किया जाये तो बड़े से बड़े रोग और कष्ठों से छुटकारा मिल जाता है। साई बाबा सदा द्वारकामाई (जिस स्थान पर वह रहते थे ), धूनी रमाये रहते थे और इस धूनी से जो भस्म प्राप्त होती थी उसे प्रशाद के रूप मे वितरित किया करते थे। उनका कहना थे - ये जीवन भी इस भस्म की भाँति है, क्षण क्षण जलते हुए अंत भस्मीभूत ही होना है। वह इस प्रकार मानव जीवन और समय के महत्त्व को लोगों तक पहुँचाया करते थे। दुनियावी कार-विहार मे मनुष्य अक्सर अपने जीवन का प्रयोजन भूल जाते हैं और सांसारिक इच्छाओं के पीछे भागते भागते कब जीवन की यात्रा समाप्त हो जाती है, पता ही नही चलता। उदी के माध्यम से साई बाबा यही संदेश दिया करते थे, समय रहते संसारिक बंधनो से मुक्त हो जाओ अन्यथा जन्मों जन्मों तक ये यात्रा युहीं चलती रहेगी। गुरु नानक देव जी की तरह ही साई बाबा भी मोक्ष या मुक्ति पाने के लिये गृस्थि जीवन का त्याग करने की बात नहीं करते थे, बस अपने कर्मों पर ध्यान दो, किसी का बुरा मत करो, ईर्ष्या और मोह दोनों पर नियंत्रण रखो। धन्यवाद।
( #100SaiBaba ) Lesson 3.


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