Wednesday, 11 June 2025

कबीर दास जी के आगमन दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

 कबीर दास जी के आगमन दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरती पर समय-समय पर ऐसे महान संत और कवि अवतरित हुए हैं, जिन्होंने अपने विचारों और कृतियों से समाज को नई दिशा दी। इनमें भक्त शिरोमणि संत कबीर दास जी का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। कबीर दास जी का जन्म 15वीं शताब्दी में माना जाता है, और उनकी जयंती (आगमन दिवस) हमें उनके जीवन, दर्शन, और उनके दोहों की प्रासंगिकता को याद करने का अवसर प्रदान करती है।

कबीरदास की का हर दोहा एवम श्लोक जीवन की हर समस्या और उलझन का समाधान और मार्ग प्रस्तुत करता है, पर उनके तीन दोहे मेरे अत्यंत प्रिय हैं।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

इस दोहे में कबीर दास जी मानव स्वभाव की उस प्रवृत्ति पर गहरी चोट करते हैं, जिसमें लोग दूसरों की कमियों को ढूंढने में समय बिताते हैं। मानव का मन निंदा, चुगली, और दूसरों की कमजोरियों को उजागर करने में रस लेता है। कबीर जी कहते हैं कि जब उन्होंने दूसरों में बुराई खोजने की कोशिश की, तो उन्हें कोई बुरा नहीं मिला। लेकिन जब उन्होंने अपने मन का आत्म-निरीक्षण किया, तो पाया कि उनसे बुरा कोई नहीं है। यह दोहा हमें आत्म-मंथन की ओर प्रेरित करता है। यह सिखाता है कि दूसरों की आलोचना करने से पहले हमें अपने भीतर झांकना चाहिए। अपनी कमियों को पहचानना और उन्हें सुधारने का प्रयास करना ही सच्चा मानव धर्म है। कबीर जी हमें सिखाते हैं कि सच्ची प्रगति आत्म-सुधार में निहित है, न कि दूसरों को नीचा दिखाने में।

कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।

यह दोहा कबीर जी के समन्वयवादी और मानवतावादी दृष्टिकोण को दर्शाता है। वे कहते हैं कि यह संसार एक बाजार की तरह है, जहाँ हर व्यक्ति अपने कर्मों के आधार पर जीवन जीता है। कबीर जी इस बाजार में खड़े होकर सभी के लिए मंगल कामना करते हैं। वे न तो किसी से अत्यधिक लगाव की सलाह देते हैं, न ही किसी के प्रति बैर रखने की। यह दोहा हमें समभाव की शिक्षा देता है – न किसी के प्रति अंधा मोह, न किसी से दुश्मनी। सभी के प्रति करुणा और सद्भावना रखना ही सच्चा धर्म है।

आज के विभाजित समाज में, जहाँ धार्मिक, सामाजिक, और राजनीतिक आधार पर लोग एक-दूसरे के प्रति द्वेष रखते हैं, कबीर जी का यह संदेश हमें एकजुटता और शांति की ओर ले जाता है। उनके अनुसार, मानव का कर्तव्य है कि वह अपने कर्मों को शुद्ध रखे और सभी के कल्याण की कामना करे।

कबीरा तेरी झोंपड़ी गल कटियाँ के पास,
जो करेंगे सो भरेंगे, तू क्यों भयो उदास?

इस दोहे में कबीर जी जीवन की नश्वरता और कर्म के सिद्धांत को रेखांकित करते हैं। वे कहते हैं कि मानव शरीर एक झोंपड़ी के समान है, जो समय के साथ नष्ट हो जाएगी। जीवन में सुख-दुख, सफलता-विफलता, सब कुछ कर्मों का फल है। जो जैसा करेगा, वैसा ही पाएगा। इसलिए उदास होने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए।

यह दोहा हमें कर्मफल के सिद्धांत से जोड़ता है और जीवन की अनिश्चितता को स्वीकार करने की प्रेरणा देता है। कबीर जी का यह संदेश हमें सिखाता है कि चिंता और दुख में डूबने के बजाय, हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ जीना चाहिए।

कबीर दास जी का आगमन दिवस हमें उनके अमर दोहों और शिक्षाओं को अपनाने की प्रेरणा देता है। उनके विचार आज भी हमें आत्म-निरीक्षण, समभाव, और कर्म के महत्व को समझाते हैं।

कबीर दास जी के आगमन दिवस की पुनः हार्दिक शुभकामनाएँ !

No comments:

Post a Comment